हिमांशु जोशी/पिथौरागढ़.यूं तो पूरे विश्व में तमाम संस्थाएं तमाम तरीके से पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास कर रही हैं, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ों में एक परंपरा जंगलों को बचाने के लिए चली आ रही है. जिसमें यहां के जंगलों को देवताओं को समर्पित किया जाता है. जिसके बाद इन जंगलों से लकड़ी काटना पूर्ण रूप से प्रतिबंधित रहता है. और सभी लोग इस फैसले का पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं. सदियों से चले आ रही इस परंपरा का असर यह हुआ कि पिथौरागढ़ के आसपास के ग्रामीण इलाकों में जंगल फल-फूल रहे हैं.
पहाडों में देवी-देवताओं के प्रति अटूट आस्था है और आज भी देवताओं का फैसला ही सर्वोपरि माना जाता है. यही वजह भी है कि उत्तराखंड को देवभूमि की पहचान मिली है. यहां के जल, जंगल और जमीन पर देवताओं का निवास माना गया है और बुजुर्गों द्वारा बनाई गई परम्पराओं से ही उत्तराखंड की संस्कृति आज भी जीवित है.देवताओं को जंगल समर्पित करने के बाद इन इलाकों से लकड़ी का अवैध कटान तो रुका ही, साथ ही जंगली-जानवरों के शिकार में भी कमी आई है. जिस कारण पर्यावरण संरक्षण की इस पहल को सराहा गया है.
पिथौरागढ़ जिले के सामाजिक और धार्मिक मामलों के जानकार भगवान रावत ने जानकारी देते हुए कहा कि एक समय में काफी बड़ी संख्या में जंगलों से अवैध कटान होता था, जहां तस्कर और माफिया स्थानीय लोगों पर हावी होने लगे. जिसके बाद से ही यहां के स्थानीय लोगों ने अपने जंगलों को बचाने के लिए जंगल देवताओं को समर्पित कर दिए, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहद जरूरी है.
पर्यावरण प्रेमी सुरेंद्र बिष्ट नेइस बारे में कहा कि एक तरफ जहां जंगल बचाने की इस परंपरा से फायदा हुआ है, तो वहीं कई लोगों का मानना है कि जंगल घना होने की वजह से जंगली जानवर आबादी की ओर आने लगे हैं, जिससे मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं पिथौरागढ़ में लगातार बढ़ भी रही है.
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FIRST PUBLISHED : June 10, 2023, 08:50 IST